हम भी कम नहीं

हम भी कम नहीं

अधिगम बिंदु

आइए, विचार करें

चित्र में सिड क्या-क्या काम कर रहा है?

क्या लड़कों का घर के काम करना आप सही समझते हैं? हाँ, तो क्यों? नहीं, तो क्यों नहीं?

लड़का-लड़की एक समान अथवा भेदभाव रहित समाज बनाना।

भाई-बहनों में प्यार, सुरक्षा और साझेदारी का भाव उत्पन्न करना।

यह समझना कि लड़कियाँ किसी से कम नहीं।

संवादों को उचित हाव-भाव व उतार-चढ़ाव के साथ पढ़ना सीखना।

ज़रा सोचिए

लड़कियों को लड़कों से कम क्यों समझा जाता है?

लड़का-लड़की में भेदभाव करना उचित क्यों नहीं है?

-पाठ के बारे में

प्रस्तुत पाठ में हम पढ़ेंगे कि कैसे एक परिवार में बेटे और बेटियों के बीच भेदभाव किया जाता है, लेकिन समय आने पर बेटियाँ सिद्ध कर देती हैं कि वे किसी से कम नहीं।

पात्र : मम्मी-पापा; दो बहनें अलीशा (12 वर्ष); सारा (11 वर्ष); भाई नील (9 वर्ष); 3 अन्य लड़के (12-13 वर्ष के)

स्थान : एक साधारण घर। चारपाई के सामने एक छोटी सी मेज कुरसी; मेज पर दूध भरा गिलास और प्लेट में दो लड्डू

[ पहला दृश्य |

(परदा उठता है।)

(मम्मी चारपाई पर बैठी हैं। नील कुरसी पर बैठा है।)

मम्मी : बेटा, जल्दी से लड्डू खा ले। तेरी बहनें देखेंगी तो माँगने लगेंगी।

नील :

(खिलखिलाकर) मम्मी, आपने मुझे लड्डू बना दिया है। मेरी कक्षा के सभी बच्चे मुझे ‘घटोत्कच’ कहकर चिढ़ाते हैं।

मम्मी :

अरे, वे सब तुमसे जलते हैं। तुम पढ़ने में उनसे आगे जो हो। देखो, इस बार तुम्हें ‘बेस्ट स्टूडेंट अवॉर्ड’ भी तो मिल रहा है।

(अलीशा अंदर आती है।)

अलीशा : (लड्डुओं की

ओर देखकर) अच्छा जी, सारे लड्डू नील को ही खिलाए जा रहे हैं। मम्मी, मुझे भी लड्डू चाहिए।

मम्मी : पंडित जी ने प्रसाद

में दो ही लड्डू दिए थे। वही इसे दिए हैं। खाने दे भाई को। इसे अभी बहुत पढ़ना है। पता है न, इस बार भाई को कौन-सा अवॉर्ड मिल रहा है?

अलीशा : (मुँह बनाकर) हुँह! तो क्या हुआ? पहली बार ही तो यह अवॉर्ड मिल रहा है। मैं भी तो अपनी फुटबॉल टीम की कप्तान हूँ। मुझे जब कप और मेडल मिलते हैं, तब तो आप इतना खुश नहीं होतीं। मुझे तो स्कूल से बाहर खेलने की इजाजत भी नहीं है।

 सारा : (आँखें मलती हुई आती है) मम्मी, भूख लगी है। मैं भी लड्डू खाऊँगी।

मम्मी : लो. दूसरी देवी जी भी आ गईं। इन दोनों को तो भाई का कुछ खाना सुहाता ही नहीं है। (नील जल्दी से दोनों लड्डू मुँह में दूँस लेता है।)

अलीशा : (नील को घूरकर देखती है) हम दोनों को एक लड्डू में से आधा-आधा नहीं दे सकता था? देख, लड्डू खा-खाकर कैसा लड्डू होता जा रहा है।

मम्मी : देखो, कैसी जबान है इसकी। अपने भाई की सेहत पर नजर लगा रही है। अरे, बढ़ती उम्र का बच्चा है।

अलीशा : हाँ-हाँ, तो लंबाई में बढ़े न! इसका तो केवल पेट ही बढ़ रहा है। सब कुछ इसे ही मिलता है। हमें तो दूध भी पानी, चाय पत्ती मिलाकर दिया जाता है

और इसे मलाई वाला दूध! (नील मुँह चिढ़ाकर हँसता है।)

मम्मी : बड़ी आई हिसाब-किताब करने वाली! तुम दोनों को तो अपने घर जाना है। मेरा नील बुढ़ापे में हमारी सेवा करेगा। (प्यार से नील को गले लगाती हैं।) दाल-रोटी रखी है। जाओ खा लो। (अलीशा पैर पटकती हुई भीतर जाती है। पीछे-पीछे सारा भी जाती है।)

[दूसरा दृश्य ]

पापा : नील बेटा, मान जाओ! अगले महीने पगार मिलते ही तुम्हारे लिए नई कमीज ले आऊँगा।

नील : पापा, मेरी सारी कमीजें छोटी हो गई हैं। मैं अवॉर्ड फंक्शन में कैसे जाऊँ?

अलीशा : (मुँह छिपाकर हँसती है) और खाओ, दूँस-दूँसकर…

नील : पापा, देखो मुझे यह चिढ़ा रही है।

पापा : (अपने ही विचारों में खोए हुए अचानक जैसे कुछ याद आ गया हो) अरे! हाँ, यह सही रहेगा। अलीशा, तुम अपनी नई टी-शर्ट ले आओ, जो स्कूल वालों ने तुम्हें फुटबॉल मैच खेलने के लिए दी थी।

अलीशा : (अपने आप से) अब मेरे कपड़े भी इन्हें मिलेंगे? (जोर से) मगर पाया, वह तो लड़कियों…

पापा : (बीच में ही टोककर) अरे! आजकल सब चलता है। तुम्हारी माँ उसे सिलकर नील के नाप की कर देंगी।

उत्तर दीजिए

नील की कितनी बहनें थी?

नील की सेहत कैसी थी?

नील : (मुँह फुलाकर) पापा, सब लोग मेरा मजाक उड़ाएँगे।

पापा : (प्यार से) बेटा, बस इस बार मान जाओ। मैं एक नहीं, तुम्हारे लिए दो-दो कमीजें ले आऊँगा।

[तीसरा दृश्य |

पापा : तुम तीनों जाओ। हम ठीक समय पर अवॉर्ड फंक्शन में पहुँच जाएँगे।

(दृश्य बदलता है)

(तीनों भाई-बहन पैदल स्कूल जा रहे हैं। तीन लड़के सामने से आ रहे हैं।)

पहला लड़का : (नील की ओर इशारा करके) अरे! यह तो घटोत्कच ही है न?

दूसरा लड़का : (हँसते हुए) नील नहीं, नीलम है। इसकी जरा कमीज तो देखो!

तीसरा लड़का : इसे लड़की बनने का बड़ा शौक है! बस जरा पतला हो जाता फिर..

(तीनों लड़के ठहाका लगाते हैं।)

अलीशा : (तीनों लड़कों को गुस्से से घूरते हुए) चुप रहो वरना पछताओगे।

नील : (फुसफुसाकर) अलीशा, इनसे पंगा मत ले। ये लोग स्कूल के दादा हैं।

अलीशा : (बिना डरे, जोर-से) रहने दे नील, दादा होंगे अपने घर के। मुझसे उलझे तो ठीक नहीं होगा।

पहला लड़का: अच्छा, क्या कर लेगी तू?

(अलीशा तेजी से उछलकर उस पर वार करती है। लड़का लड़खड़ाकर गिर जाता है। बाकी दोनों लडके भौचक्के रह जाते हैं। नील भी हैरानी से अपनी बहन को देखता है।)

सारा

: (आगे आकर) अब क्या, तुम दोनों को भी इसी तरह समझाना पड़ेगा?

(तीनों लड़‌के सिर झुकाए चुपचाप चले जाते हैं।)

सारा : अलीशा, तुममें इतनी ताकत कहाँ से आ गई? मरगिल्ली-सी तो हो तुम !

अलीशा : अच्छा, कोई मेरे भाई को तंग करेगा तो क्या मैं चुप रहूँगी? मैं किसी से कम हूँ क्या?

नील : दीदी, आपने मुझे बचा लिया। ये तीनों हमेशा मेरा मजाक उड़ाते थे।

अलीशा : ओ हो! आज तो मेरा भाई मुझे ‘दीदी’ कह रहा है! चलो, कोई बात नहीं। फिर कभी इन्होंने ऐसा किया, तो मुझे बताना। अब तो अपनी चीजें हमारे साथ बाँटकर खाओगे न ! (नील शरमाकर मुँह नीचे कर लेता है। दोनों बहने हँसती हैं।)

-कठिन शब्दों के अर्थ जानिए-

घटोत्कच-महाभारत का एक पात्र (भीम-हिडिंबा का पुत्र जिसका पेट घड़े जैसा था।); जलते ईष्यां करते; इजाजत-अनुमति; सुहाता अच्छा लगता; सेहत- स्वास्थ्य; नजर लगना टोकना; हिसाब-किताब करना-जाँचना; पैर पटकना गुस्सा होना; पगार तनख्वाह, वेतन; दूँस ठूंसकर जबरदस्ती मुँह में भरकर; मुँह फुलाकर-रूठकर; फुसफुसाना बहुत धीरे बोलना; पंगा-झगड़ा; दादा-बिना बात लड़ने-झगड़ने वाला; भौचक्का आश्चर्यचकित; मरगिल्ली-सी-बहुत अधिक दुबली-पतली।

क्या आप जानते हैं?

Integrated Learning

भारत के मेघालय राज्य में कुछ ऐसी जनजातियाँ हैं, जिनमें विवाह के बाद लड़की को नहीं, लड़के को अपनी पत्नी के घर जाकर रहना पड़ता है। बच्चों को पिता का नहीं, माँ का उपनाम दिया जाता है।

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